व्यक्तित्व को आकर्षक बनाने के चंद सूत्र | Talking Tips To Improve Your Personality

       व्यक्ति के व्यक्तित्व की पहचान उसके बात करने के ढ़ंग से होती है। आप किसी से अच्छे ढ़ंग से बात करते हैं तो आप उसे अपनी ओर आकर्षित कर सकते हैं चाहे आपका रंग-रूप कैसा भी क्यों हो। आपके बात करने का ढ़ंग ऐसा होना चाहिए कि आपसे जो व्यक्ति बात कर रहा है, वह आपकी बातें सुनने के लिए मजबूर हो जाए।
     सबसे आवश्यक बात है कि आप जिस विषय पर बोलें,उस विषय पर आपका पूर्ण अधिकार होना चाहिए। जिस विषय पर आपका ज्ञान हो, उस विषय पर मिथ्या बोलने के बजाए चुप रहना ही अच्छा होता है। आप भी निम्नांकित बातों का ध्यान रखकर अपने व्यक्तित्व को प्रभावशाली बना सकते हैं।
     बात करते समय हमेशा सोच-समझकर ही बात कीजिए। सामने वाले व्यक्ति की बातों को भी ध्यानपूर्वक सुनने का प्रयास कीजिए।
     कभी भी झूठ बोलकर दूसरे पर अपना प्रभाव डालने की कोशिश करें। अगर किसी चीज के बारे में पता नहीं हो तो उस पर बोलने की अपेक्षा ध्यान देकर सुनना अच्छा होता है।
     दूसरों की बातों को पूरी तरह सुनने के बाद ही उसका जवाब देना चाहिए तथा अपनी आवाज़ को अधिक कर्कश बनाकर उसे नरम बनाकर ही रखें।
     जिस विषय पर आप बोलें, उस पर आपका पूरा अधिकार होना चाहिए। अपनी गलती को सही करने की कोशिश करें।
     बोलते समय अपने स्तर का ध्यान अवश्य रखिए। बड़ों से बात करते समय उनके लिए सम्मानजनक शब्दों का का प्रयोग अवश्य करना चाहिए। सुनने वाले के रूचि के अनुसार ही बोलें।
     अपने से छोटों से बात करते समय उनसे सीमित बातें ही करें। अगर आप उनसे ज्यादा बात करेंगे तो हो सकता है कि वो आपकी बातों पर ध्यान दें और आपका मजाक बनाना शुरू कर दें।
     बोलते समय अधिक हिले-डुलें नहीं और ही हाथों को हिलाएं। बोलते समय मुंह से थूक निकालें, इसका ध्यान अवश्य रखना चाहिए।
     किसी आगन्तुक के सामने अपने से छोटे को डांटें, चाहे वह आपकी नौकर या नौकरानी ही क्यों हों। नौकर-नौकरानी के साथ उदारतापूर्वक बात करने से इम्प्रेशन बढ़ता है।
     किसी भी महफिल में किसी पर कोई इस तरह का कमेंट करें जिससे उस व्यक्ति का अपमान हो। दूसरे व्यक्ति के वस्त्रों, रंग-रूप या हाव-भाव पर टिप्पणी करें।
     किसी की बुराई करने से परहेज करें। अगर कोई किसी की बुराई कर रहा हो तो क्षमा मांगते हुए या वहां से हट जाएं या फिर चुपचाप सुनते रहें।
     अपने नौकर या नौकरानी से अधिक मुंह लगाएं हमेशा उन्हें डांटने-फटकारने की आदत को हटा दें तथा उसके सुख-दुख का व्यक्तिगत ध्यान अवश्य रखें।
     अगर दूसरे व्यक्ति से बातें करते समय कोई गलत बात मुंह से निकल जाती है, तो उस बात को लेकर उसकी हंसी उड़ाएं और ही उसे बीच में टोकें। आपके ऐसा करने से सामने वाला व्यक्ति आपको सम्मान से देखेगा।
     बच्चों के सामने बड़ों के लिए अपशब्द कहें। बच्चों में सभी से सम्मानपूर्वक बोलने तथा प्रणाम करने की आदत को डालिए।
     अगर दो व्यक्ति आपस में बात कर रहे हों तो बिना मांगे अपनी सलाह दें अपने घर की बुराईयों का जिक्र भी हितैषी जानकर दूसरों से भी करें।
     पहली बार किसी से बात कर रहे हों तो संयम से बात करें तथा शालीनता का ध्यान अवश्य रखें। हर बात पर ठहाका लगाकर हंसें और सार्वजनिक स्थान का भी ध्यान रखें।

     किसी के बारे में कोई गलत बात करें। अगर यह बात उसके कानों तक पहुंच गयी तो उसकी नज़रों में आपके लिए सम्मान कम हो जाएगा। अगर आप में ऐसी कोई आदत है, जिसके बारे में घर के सदस्य भी आपको कई बार टोक चुके हों तो ऐसी आदत को छोड़ने की कोशिश करें।
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आप भी दे सकतीं हैं सुन्दर पुत्र को जन्म ||Swasthya Aur Saundarya ||

रतिक्रिया सिर्फ मानवों के जीवन में बल्कि संपूर्ण जीवों के जीवन में महत्वपूर्ण स्थान रखती है। रतिक्रिया के माध्यम से नर एवं मादा के पृथक-पृथक शरीर एकाकार की भावना से एक होकर चरमानन्द को प्राप्त करते ही हैं, साथ ही स्वस्थ-सुन्दर संतान का भी सृजन करते हैं।
प्रेम सहित स्त्री सहवास गृहस्थ धर्म का मूल मंत्र है। शास्त्राकारों द्वारा सहवास के जो नियम बनाए गए थें, वे आज भी पूर्णतया वैज्ञानिक हैं। यदि संयम से उन नियमों का पालन किया जाए तो व्यक्ति दीर्घायु, कांतिवान, बौद्धिक होने के साथ-साथ स्वस्थ, सुंदर तथा परोपकारी संतान को जन्म दे सकता है।
आज के समय में मैथुन का अर्थ सिर्फ आनंद प्राप्त करने तक ही सीमित रह गया है जबकि इसका अर्थसंतानोत्पत्तिसे ग्रहण किया जाता है। दिन-रात, सुबह-शाम जब भी मर्जी करती है, पुरूष स्त्री के साथ संभोगरत होकर अपनी इच्छा की पूर्ति कर लेता है। इससे क्षणिक शारीरिक संतुष्टि तो मिल सकती है किन्तु श्रेष्ठ संतानोत्पत्ति की कामना पूरी नहीं हो सकती है।
कामशास्त्र के आचार्यों के अनुसार रात्रि के प्रथम पहर में संभोग द्वारा उत्पन्न संतान अल्पजीवी होती है। द्वितीय प्रहर से दरिद्र पुत्र तथा अभागी कन्या पैदा होती है। तृतीय प्रहर के मैथुन से निस्तेज एवं कुबुद्धि पुत्र या क्रोधी कन्या उत्पन्न होती है, रात्रि के चतुर्थ प्रहर की संतान स्वस्थ, बुद्धिमान, आस्थावान, धर्मपरायण तथा आज्ञाकारी होती है। दिन में गर्भधारण के लिए की गई रतिक्रिया सर्वथा निषेध है। इस समय की संतान रोगी, अल्पजीवी, दुराचारी, एवं अधर्मी होती है। प्रातः और सायंकाल में की गई रतिक्रिया विशेषकर ब्रह्ममुहुर्त में उत्पन्न कामवेग विनाश का कारण सिद्ध होती है।
संभोग के बाद गर्भधारण करने से पुत्र होगा या पुत्री, इसकी जिज्ञासा प्रायः सभी दंपति को होती है। आज के समय में लिंग की जानकारी वैज्ञानिक विधियों से प्राप्त करना कानूनी जुर्म है। प्रसिद्ध जीवशास्त्रियों एवं कामशास्त्र के आचार्यों द्वारा बताए गए नियमों से यह जाना जा सकता है कि गर्भ में पुत्र पल रहा है या पुत्री।

महर्षि वाग्भट्ट के मतानुसार मैथुन काल में स्त्री के दायें अंगों पर अधिक दबाव पड़ने से पुत्र बायें अंगों पर अधिक दबाव पड़ने से पुत्री का प्राप्ति होती है।

क्या आप स्वस्थ रहना चाहते है....||Health Tips|| Swasthya Aur Saundarya

बीमार पड़ने पर उपचार की तैयारी करने से अच्छा है कि हम स्वास्थ्य के प्रति जागरूक बने रहें। खुद को स्वस्थ कैसै रखा जाए, इसके लिए हमारे आयुर्वेद शास्त्र ने अनेक उपाय बताए हैं। कुछ स्वास्थ विषयक नियमों का पालन करते हुए हम अपने स्वास्थ्य को संतुलित रख सकते हैं। अगर इन्हें जल्द ही अपने जीवन में लागू किया जाए तो बीमार होने की आशंका काफी हद तक कम की जा सकती है।
     भोजन करने के बाद बाएं करवट लेटकर मुंह बंद करके सात सांस लें, इसके बाद चित्त लेटकर चैदह सांस लें। इस विधि से भोजन की पाचन क्रिया सही रहती है और उदर संबंधी अनेक रोग जैसे गैस, बदहजमी, अजीर्ण, कब्ज आदि की बीमारी आपसे दूर नज़र आएगी।
     भोजन करने से पहले तथा भोजन करने के बाद मूत्र त्याग करने से पेट की पथरी, पाचन क्रिया में गड़बड़ी, जोड़ों में दर्द की अनेक परेशानियों से बचा जा सकता है।
     मल-मूत्र त्याग करते समय दांत पर दांत सटाए रखें। इससे दांत कमजोर नहीं होते, हिलते नहीं हैं और दांतों में दर्द नहीं होता। इस विधि से दांत संबंधित अनेक परेशानियों एवं बीमारियों से बचा जा सकता है।
     सप्ताह में एक दिन दोनों कानों में शुद्ध सरसों का तेल डालने से तथा स्नान से पहले नित्य नाभि में सरसों का शुद्ध तेल लगात रहने से कान बहना, कान दर्द, कनफेड़ा और लिवर से भी संबंधित अनेक बीमारियां दूर रहती हैं।
     रात में सोने से पहले एवं सुबह बिस्तर से उतरने से पहले भूमि को प्रणाम करने से शरीर की अकड़न, नींद आना आदि अनेक परेशानियां दूर हो जाती हैं। यह कार्य नियमित किया जाना चाहिए।
     स्नान करते समय सबसे पहले बाएं पांव पर पानी डालें। इसके बाद क्रमशः दाएं हांथ, पेट, माथा तथा पूरे शरीर पर पानी डालने से सर्दी, खांसी बुखार आदि अनेक परेशानियों से बचा जा सकता है।
     साबुन से स्नान करने के बाद सम्पूर्ण शरीर पर सरसों, नारियल या अन्य तेल लगाकर पुनः स्नान कर लेने से खुजली, दाद, एक्जिमा, लाल दाने आदि अनेक चर्म रोगों से बचा जा सकता है।
     पालथी मारकर भोजन करने से पेट संबंधी अनेक बीमारियों से बचा जा सकता है।
     शुद्ध सरसों तेल को नाक में सूंघते रहने से नकसीर, सर्दी, नजला, जुकाम, अधिक छींक आना, आदि अनेक बीमारियां दूर रहती हैं। समयाभाव हो सप्ताह में एक दिन अवश्य ही सरसों का तेल लगाना चाहिए।
     भोजन के बाद अगर दांत में तिनका करना पड़ता हो तो हरे दूब के डंठल से तिनका करने से दांत में कीड़े नहीं लगते हैं और दांत में दर्द भी नहीं होता है।
     प्रातःकालीन सूर्य की रौशनी में नियमित रूप से बैठने से पेट, तिल्ली, लिवर, गुर्दा, चर्मरोग आदि अनेक बीमारियों से बचा जा सकता है।
     रात को सोते समय ढ़ीले कपड़े पहनकर सोना चाहिए। अन्डरवीयर एवं नारीगत अधोवस्त्रों को खोलकर ही सोना हितकर होता है।
     प्रातःकाल नित्य लगभग एक किलोमीटर तक टहलने से, हरी दूब पर नंगे पांव चलने से उद्यान में कुछ घंटे बिताने से हाई ब्लड प्रेशर, आंखों की रोशनी की कमी, मोटापा आदि अनेक बीमारियों से बचा जा सकता है।
     स्वास्थ्य को ठीक रखना यक शरीर का अस्वस्थ बनाना, आपके चिकित्सक के पास बार-बार जाते रहना अच्छा है या ऊपर बताए गए नियमों का पालन करके स्वस्थ रहना, यह आप पर निर्भर करता है।





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